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चिनार की पुकार

  चिनार की पुकार ~नवल जाणी झेलम की धारा अब लाल बह रही है, लिद्दर की लहरों में चीखें गूंजती हैं। सैलानियों की हँसी— अब गोलियों की गूंज में खो गई। धर्म पूछकर सीने छलनी किए जा रहे हैं, सवाल नहीं, सिर्फ निशाने तय हैं। चिनार अब मीठे नहीं रहे— उनकी जड़ें नम हैं बेबस स्त्रियों की आंखों से बहते नमकीन पानी से। जब तक मिट्टी की सोच नहीं बदलेगी, चिनार खारे ही उगेंगे, और पहलगाम चीख, चीत्कार की घाटी बना रहेगा।