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राखी पर्व 2018

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#राखी_पर्व_2018 पर्व, त्योहार, उत्सव कोई भी हो, बच्चों की चुहलबाजी, नटखटापन, धम्माचौकड़ी, हुड़दंग आदि के बिना अधूरा होता है. राखी पर्व भाई बहिन के पवित्र, निश्छल प्रेम का उत्सव है परन्तु इन नन्हें मुन्नें बच्चों का आपस में मिलना, अपनापन दिखाना, फिर गुट बनाना, तकरार व आखिर झगड़ने में बदल जाना, बडा़ ही रोचक और आनंददायक होता है बच्चों को देखकर मुझे मेरा बचपन याद आता है, जब मैं माँ के साथ राखी पर्व के अवसर पर ननिहाल जाते थे, वहां नानी जी से मिलना (वैसे अब नानी की यादें बहुत ही धुंधली हो चुकी है क्योंकि मैं जब 6-7 साल का था नानी  स्वर्गावासी हो गए थे)  नानी का अपने 'भखारी' (स्टोर रूम)  में डिब्बे में रखे लड्डू खिलाना आज भी याद है. उस समय नानी मुझे सुपर नानी लगती थी. ममेरे भाई-बहिन के साथ खेलना, मस्ती करना, झगड़ना होता तो सुपर नानी हमेशा मेरा ही पक्ष लेती थी. माँ जब मामाजी के राखी बांधती, तो मैं भी माँ से राखी बंधवाता. उस समय राखी मेरे लिए सुंदर दिखने वाली वस्तु मात्र थी. परंतु राखी के डोरे का भाव बहुत ही गहरा होता है. ऐसा नहीं हे़ै कि बहिन अपनी रक्षा स्वयं नहीं कर सकती, यह त्योहार

सावन आया /नवल जाणी

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सावन आया / नवल जाणी ---------------------------------------------------- चाँदनी का रेत पर उतरना,  ओस कणों का मुस्करा कर धवल मोतियों-सा निखरना, प्रिया संग बीते लम्हों की याद आती है.  कोयल गाए मेघ मल्हार, बादल की शीतल रिमझिम फुहार, खेतों में चली यौवन-सी बहार, मेघों की भ्रमर-सी काली घटा घिर आती है. सावन आया, सावन आया...