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नई आशा, नया वर्ष (कविता) - नवल जाणी

नयी आशा, नया वर्ष - नवल जाणी नयी आशा-अभिलाषा, नये मत, नये विचार, नयी इच्छा, नयी चाहना, जीवन में नव आत्मविश्वास. नये गीत-संगीत, नयी रीत, नयी प्रीत, नया प्रवाह, नयी जीत, जीवन में नये सखा-मीत. नया उत्साह -उमंगे, नयी ज्योत, नयी तरंगे , नया जोश, नया जुनून,  जीवन के हर क्षण में. आगे बढ़ने की चाह, नित नयी पथरीली राह, बन निडर, कर हिम्मत, जीवन चला, समय के संग.  बाधाओं से न घबराना, पीछे कदम नहीं हटाना, मिट जाए पर सिर न झुकाना , आगे ही आगे बढ़ते जाना...  दिसम्बर 31, 2017 नवल जाणी ©

कुण कैवे तू है अेकलो? (राजस्थानी कविता) - नवल जाणी

'कुण कैवे तू है अेकलो?' (राजस्थानी कविता) ----------------------------- नवल जाणी ------------------------------ पास थांरै लाग्यां मेळो कुण कैवे तू है अेकलो? नन्हीं-सी जिन्दगाणी मांय घणी ही अबकायां झेळी.. ओस कणों सूँ परभात थानै सदा ही मुळकणौ सिखावै, लाली दैवण सूरज किरणों हर रोज परभातै आवै.. तेज दैवण सूरज थानै पास अपणै बुलावै. शीतल बाजै वायरो लै गोद मांय सुलावै.. सांझ बेळा री मनभावनी रात थानै लोरी सुनावै. परभातै री नि:छळ हांसी थारै साथै गुनगणावै.. बेळा परभात-दिन-सांझ-दुपहर अै अनूठा, संगळां प्यारा. पछै कठै तू है अेकलो साथै थारै बहोत सारा... #नवल_जाणी

बरखा रा सुर - (राजस्थानी कविता) - नवल जाणी

'बरखा रा सुर' - (राजस्थानी कविता) ------------------------------- नवल जाणी ------------------------------- जद बरखा हुवै कितो आछौ लागै. बीहड़ै री भीजती वनासपतियों सूं  उठै है सौंधी खुशबू अर फैल जावे है संगळे वन में. अेक रोहिड़ै रै हैट ऊभो है नन्हों हिरणियों डरू-फरू दिखे. थूं जाणै, वो कुण है वो 'म्है' हूं. दुनिया री काय-कोय सूं आगो अेक मानखो धरा री हरियाली मांय सुणने आयो अादम गीत. थूं भी आज्या मिलावो सुर में सुर... * (थूं - प्रिय) © www.twitter.com/NavalJani.     http://www.facebook.com/naval.janni

परेम रा छांटा - नवल जाणी (राजस्थानी कविता)

परेम रा छांटा ----------------- नवल जाणी ----------------- सूरज उग्यो नुंवी किरणों सागै दैवण लाग्यो रोशनी कण-कण में. भूलो दुख अर दुसमणी री भावना जो भी हुवै अपणै मन में. निबळ निराशा अर सूनोपन कदै'ई ना आवै आँगन में. नुंवै साल रै नुंई टैम में किलकारी टाबर-टोळी करै प्रांगण में. ऊँचा सुपणा ऊँची उडान सफल हरमेस हुवौ जीवण में. परैम रा छांटा बरसे जन पर ज्यूं बरखा बरसे सावन में...   'नवल'

वां कुण है - नवल जाणी (राजस्थानी कविता)

'वां कुण है' -----------------------   नवल जाणी   -----------------------  मन रै तारों नै हिलाय'नै लुक'गी वां कुण है.  देख उणांनै फूलङा शरमावै वां कुण है.  नीं देखूं उणनै तो मनङौ झोरावै वां कुण है.  बाजण लाग्या बाजा देख उणनै वां कुण है.  नागण ज्यूं लट्टीयां फहरावै वां कुण है.  मीठी  राग कानों में सुणावै वां कुण है. फूल ही खिलण लाग्या देख उणनै वां कुण है.  घोर अंधेरे कीयौ च्यांनणौ वां कुण है.  कूकै आज फेरूं कोयळङी ज्यूं वां कुण है.  आधी रातों मांय सुपणां आवै वां कुण है.  सूनी सेजां झाला देवै वां कुण है.  गावै नाचै राग पपैयां री वां कुण है. आँख्यां तरसे देखण सारू वां कुण है... 'नवल'

जीवण री आस  - नवल जाणी  (राजस्थानी कविता)

जीवण री आस  ------------------------ नवल जाणी  ------------------------ थूं जीवण री आस है म्हारै सुनेपन में  रैवे थूं देसावर, पण लागै म्हारै मन में. थांरी चावना म्हारै दिल में, थूं जीव री जङी  थूं म्हारै मन में रैवे, ज्यूं जपू माळा री लङी.  थनै देख हँसती कूपळां , मौज सूं खिल जावै थांरी बोली, नदियां री मीठी राग सुणावै.  थांरौ मुखङो चमकै ज्यू, पूनम रात च्यांनणी होठां बिचाळै रद चमकै, ज्यू आभै री बिजळी.  मुखङै माथै लट्टीयां नाचै, ज्यू नागण आछै धोरे री थूं म्हारी पूजा अर अरदास, हूं थांरौ पूजारी.  जद ओल्यूं आवै थांरी, हाथ दिलङै माथ धर लैवूं मन रै दरपण मांय थांरा दरसन कर लैवूं.  थूं जीवण री आस है म्हारै सुनेपन में सातों जळम थंनै पाँऊ, आ चावना मन में...         'नवल'

पल-पल थारी औल्यूं - नवल जाणी (राजस्थानी कविता)

'पल-पल थारी औल्यूं ' -------------------     नवल जाणी --------------------- च्यांनण रातङी कोचर बोल्यां, विरह रा किंवाङ खोल्यां. पल-पल थारी ओल्यूं  आवै, हिचकी मारै हिचकौळा..     मझ रातङी बादळ आया, बैरण बणी रै निंदिया.. टप-टप टाप टपकण लागी, भीज रही है सैय्या..   सगळां रै आँगण दिवलां जळै, म्हारै आँगण जिया. बायरौ बैहतो डांभ दैवे, ताना मारै सैय्या..   कींकर कैवूं मन री बातां, हिवङौ दैवे हबौळा. निंदिया म्हारी बैरण बणगी, आवै घणी उबाया..   टूटी निंदिया बिखरया सुपना, छूटगी रै आसा. आँख्यां झरै झरणै ज्यूं, बध रैयी मन री प्यासा..   आँख्यां आई अंऊङौ री जौन, बैरण बणी रै निंदिया. थैई बतावां म्हैं कै करूँ, कर-कर थाक्यां उबाया..  पल-पल थारी औल्यूं आवै, हिचकी मारै हिचकौळा...        'नवल'

थांनै पावण री आस - नवल जाणी (राजस्थानी कविता)

थांनै पावण री आस ------------------ नवल जाणी  ------------------ वां पूछै म्हैं उणसूं इतौ परेम क्यूं करूँ म्हैं कह्यौ म्हारी एक चावना है थांनै पावण री. वां कैवे हरमेस मोळा-मोळा क्यूं रैवो म्हैं कह्यौ बणती खपत है म्हारी थांनै हरैक खुशी देवण री. वां कैवे हरमेस कीं-कीं सोच मांय क्यूं रैवो म्हैं कह्यौ आदत पङगी म्हारी थांनै सुपनों मांय अपणावण री. वां कैवे जोग संजोग म्हूं नीं मिळी तो म्हैं कह्यौ मन करै'क  त्रिकाळ बणीयौङी जिंदगाणी मिटाणै री. वां कैवे थांनै कांई मिळेगों मर मिट नै म्हैं कह्यौ एक आस है थांनै आगळै जनम मांय पावण री.             'नवल'

परेम रै बदळै परेम - नवल जाणी (राजस्थानी कविता)

परेम रै बदळै परेम ------------------ नवल जाणी ------------------ कठै अर कियां निभा सकूं म्हूँ इतरौ परेम जिको लडावती जावै है थूँ कै करूँ म्है थारां इतरां उपहारां रौ कियां पडूत्तर दूँ थारी मनवारां रौ . म्हानै देखतां ही थारी आँख्यां मांय आ जावै है मां री जियां घणीहारी चमकण कूङ अर धोखे री इण दुनिया मांय थारौ आछौ परेम जियां रेत रै धोरां मांय हांसतो रैवै रोहिङो  .. थूँ तो हरमेस करै पूजा अर अरचना आपणै ईसरां सूं कईजै म्हानै ही सीखणौ है थांकी जियां परेम करणो अर लुटाणो क्यौ'क म्हैं ही कर सकूं थांरै जियां परेम रै बदळै परेम ...               'नवल'