वां कुण है - नवल जाणी (राजस्थानी कविता)
'वां कुण है'
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नवल जाणी
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मन रै तारों नै हिलाय'नै लुक'गी
वां कुण है.
देख उणांनै फूलङा शरमावै
वां कुण है.
नीं देखूं उणनै तो मनङौ झोरावै
वां कुण है.
बाजण लाग्या बाजा देख उणनै
वां कुण है.
नागण ज्यूं लट्टीयां फहरावै
वां कुण है.
मीठी राग कानों में सुणावै
वां कुण है.
फूल ही खिलण लाग्या देख उणनै
वां कुण है.
घोर अंधेरे कीयौ च्यांनणौ
वां कुण है.
कूकै आज फेरूं कोयळङी ज्यूं
वां कुण है.
आधी रातों मांय सुपणां आवै
वां कुण है.
सूनी सेजां झाला देवै
वां कुण है.
गावै नाचै राग पपैयां री
वां कुण है.
आँख्यां तरसे देखण सारू
वां कुण है...
'नवल'
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