किसी देश के किसी गाँव में - कविता (नवल जाणी)
किसी देश के किसी गाँव में
Naval Jani
किसी देश के किसी गाँव में,
अब भोर मुर्गों की बाँग से नहीं,
मोबाइल के अलार्म से जागती है।
सूरज की पहली किरण खिड़की से झाँकती है,
पर खिड़कियाँ अब खुले आँगन में नहीं,
सीमेंट की ऊँची दीवारों में क़ैद हैं।
पगडंडियों की मिट्टी पर अब
कंक्रीट की सड़कें बिछ चुकी हैं,
जहाँ बैलगाड़ियाँ चलती थीं,
वहाँ अब ट्रैक्टर और बाइकें दौड़ती हैं।
खेतों में किसान अब हल नहीं चलाते,
बल्कि मोबाइल पर ऐप्स में मौसम देखते हैं,
बीजों से पहले उधार का ब्याज उगता है,
और फ़सलों से पहले लोन की किस्त कटती है।
चौपालों की जगह व्हाट्सएप ग्रुप्स ने ले ली,
जहाँ हँसी के ठहाके नहीं,
सिर्फ़ इमोजी भेजे जाते हैं।
जहाँ कभी बुज़ुर्ग पीपल तले बैठ
कहानियाँ सुनाते थे,
अब वे ऑनलाइन न्यूज़ पढ़ते हैं,
और पुरानी यादों की एल्बमें
गैलरी में बदल चुकी हैं।
बच्चों के खेल अब मैदानों में नहीं,
मोबाइल स्क्रीन में सिमट गए हैं,
गिल्ली-डंडा, कबड्डी सब अतीत हो गए,
अब ‘गेमिंग चेयर’ पर बैठकर
वर्चुअल दुनिया के योद्धा बनते हैं।
गाँव में बिजली तो आ गई,
पर बात अब भी अधूरी है,
लाइट से ज़्यादा,
नेटवर्क आने की ख़ुशी होती है।
शामें जो कभी चौपालों पर गुज़रती थीं,
अब सोशल मीडिया की स्क्रॉलिंग में खो जाती हैं।
रसोई में चूल्हों की जगह
इंडक्शन गर्म होता है,
दादी के हाथों की रोटियों से पहले
फूड डिलीवरी की घंटी बजती है।
लोरियाँ अब सिर्फ़
यूट्यूब पर बची हैं,
और माँ की ममता,
ऑनलाइन क्लासेस के बीच
कहीं गुम हो गई है।
गाँव अब गाँव नहीं रहा,
शहर बनता जा रहा है,
पर इस बदलाव की दौड़ में,
क्या कुछ पीछे छूट रहा है?
शायद अपनापन, शायद रिश्ते,
या फिर वो गाँव,
जो अब भी दिलों में बसता है।
— नवल जाणी
✌️✌️ शानदार यथार्थ पर आधारित कविता
जवाब देंहटाएं🥰🥰
जवाब देंहटाएंप्रतिक्रिया अवश्य दे …
जवाब देंहटाएंये कविता ही नहीं करोड़ों लोगों के दिलों की भावनाएं हैं लेकिन उन भावनाओं पर कोई नियंत्रण नहीं है मजबूरिया बहुत कुछ पीछे छुटा देती है नवल ज्यानी द ग्रेटेस्ट पोयट ऑफ कॉमन पीपल
जवाब देंहटाएंजो किसी अन्य के मन की बात समझ ले वही कवि हृदय होता है...
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