मेरी शिक्षकीय यात्रा: एक अनुभव (नवल )
मेरी शिक्षकीय यात्रा: एक अनुभव
मार्च 2008 का दिन मेरी जिंदगी में एक नया अध्याय लेकर आया। बालिका विद्यालय डाबलीसरा में हिंदी शिक्षक के रूप में मेरी नियुक्ति हुई, और मैं पूरे जोश और समर्पण के साथ इस पवित्र कार्य में जुट गया। विद्यालय का माहौल तब बहुत सहज और सौहार्दपूर्ण था। सभी शिक्षक एक-दूसरे के सहयोगी थे और अपने कर्तव्य को ही प्राथमिकता देते थे। विद्यार्थियों के प्रति समान भावना थी, और शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य हर किसी के लिए सर्वोपरि था।
करीब 10-11 वर्ष तक डाबलीसरा विद्यालय में अध्यापन कार्य करने के बाद, सितंबर 2018 में मेरा स्थानांतरण वर्तमान विद्यालय में हुआ, जहाँ मैं आज भी कार्यरत हूँ। विद्यालय बदला, माहौल बदला, पर मेरी शिक्षण के प्रति निष्ठा वही रही। लेकिन इस नए वातावरण में मैंने कई सकारात्मक और नकारात्मक बदलाव देखे, जिनसे शिक्षा जगत की वास्तविकता को और गहराई से समझने का अवसर मिला।
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पिछले कुछ वर्षों में विद्यालयों में कार्यसंस्कृति में बड़ा बदलाव आया है। पहले सभी शिक्षक समान भाव से कार्य करते थे, लेकिन अब उच्च कक्षाओं में पढ़ाने वाले कुछ शिक्षक खुद को सिर्फ शिक्षक नहीं, बल्कि अधिकारी समझने लगे हैं। उनका ध्यान बच्चों को पढ़ाने से ज्यादा अपने आदेशों को मनवाने पर रहता है।
इसी सोच का असर निम्न कक्षाओं में पढ़ाने वाले शिक्षकों पर भी पड़ा है। कुछ लोग अपने ज्ञान और अनुभव के आधार पर सहयोग करने के बजाय, अपनी वरिष्ठता दिखाने और दबदबा बनाने में लगे रहते हैं। यह प्रवृत्ति विद्यालयों की सकारात्मक कार्यसंस्कृति को प्रभावित कर रही है। शिक्षा का जो वास्तविक उद्देश्य है—ज्ञान का प्रसार, वह कहीं-न-कहीं इस दिखावे और औपचारिकता के नीचे दबता जा रहा है।
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इन सब परिवर्तनों के बावजूद, मैंने अपने 17 वर्षों के सेवाकाल में कभी अपने कर्तव्य से समझौता नहीं किया। मैंने हमेशा समय की पाबंदी और निष्ठा को प्राथमिकता दी है। जब कोई व्यक्ति पूरी लगन और ईमानदारी से अपना कार्य करता है, तो कोई भी उसे डिगा नहीं सकता। मुझे भी कभी किसी की परवाह नहीं रही, क्योंकि मेरा ध्यान हमेशा अपने विद्यार्थियों को बेहतर से बेहतर ज्ञान देने पर रहा है।
मेरे लिए शिक्षण सिर्फ एक नौकरी नहीं, बल्कि एक सेवा और साधना है। मैं हर दिन इस कोशिश में रहता हूँ कि मेरा अध्यापन विद्यार्थियों के लिए उपयोगी और प्रेरणादायक हो। जब विद्यार्थी संतुष्ट होते हैं और उनके अंदर सीखने की इच्छा जागती है, तो वही मेरी सबसे बड़ी उपलब्धि होती है।
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शिक्षा केवल किताबों तक सीमित नहीं होती, बल्कि यह जीवन का दर्शन भी है। मैंने अपने शिक्षकीय कार्य के साथ-साथ स्वाध्याय, चिंतन और लेखन को भी अपने जीवन का अभिन्न हिस्सा बनाया है।
हर वर्ष मैं 15-20 पुस्तकें पढ़ता हूँ, जिससे मेरी सोच का दायरा और भी विस्तृत हुआ है। अध्ययन ने मुझे न केवल एक बेहतर शिक्षक, बल्कि एक गहरे विचारक और लेखक के रूप में भी विकसित किया है। मेरे पास 500 से अधिक साहित्यिक पुस्तकों का संकलन है, जिनमें हिंदी साहित्य, काव्य, उपन्यास, दर्शन और जीवन संबंधी महत्वपूर्ण ग्रंथ शामिल हैं। इन पुस्तकों ने मेरे लेखन को एक दिशा दी और सृजनशीलता को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया।
मैंने विद्यार्थियों में कविता, लेखन और साहित्य के प्रति रुचि उत्पन्न करने का प्रयास किया है, ताकि वे भाषा को केवल परीक्षा तक सीमित न रखें, बल्कि इसे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा समझें। साहित्य केवल पढ़ने के लिए नहीं होता, बल्कि उसे अनुभव करने, महसूस करने और अभिव्यक्त करने के लिए भी होता है।
अपने शिक्षकीय जीवन के साथ-साथ मैंने काव्य, डायरी और लघुकथाएँ लिखने का कार्य भी जारी रखा है। मेरे विचार, भावनाएँ और अनुभव लेखन के माध्यम से एक आकार लेते हैं। मेरी वर्षों की साधना का परिणाम है कि मेरा पहला काव्य संग्रह "अनकही बातें" शीघ्र ही पाठकों के बीच आने वाला है। यह केवल एक पुस्तक नहीं, बल्कि मेरे अनुभवों और भावनाओं की अभिव्यक्ति का एक माध्यम है।
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समय के साथ कई बदलाव आते हैं। विद्यालयों का माहौल बदला, सहकर्मियों का व्यवहार बदला, लेकिन मैंने कभी अपने मूल्यों और कर्तव्यों से समझौता नहीं किया। शिक्षण के प्रति मेरा समर्पण अटूट रहा है, और यही मेरी सबसे बड़ी उपलब्धि है।
मेरे लिए शिक्षा एक साधना है, जिसे मैं पूरे मनोयोग से करता हूँ। चाहे परिस्थिति जैसी भी हो, जब तक मेरे अंदर सृजनात्मकता और शिक्षण का जुनून रहेगा, मैं अपने विद्यार्थियों को सच्ची शिक्षा देने और साहित्य की दुनिया में नए आयाम स्थापित करने की कोशिश करता रहूँगा।
~नवल
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