जीवण री आस  - नवल जाणी  (राजस्थानी कविता)

जीवण री आस 

------------------------
नवल जाणी 
------------------------

थूं जीवण री आस है म्हारै सुनेपन में 
रैवे थूं देसावर, पण लागै म्हारै मन में.

थांरी चावना म्हारै दिल में, थूं जीव री जङी 
थूं म्हारै मन में रैवे, ज्यूं जपू माळा री लङी. 

थनै देख हँसती कूपळां , मौज सूं खिल जावै
थांरी बोली, नदियां री मीठी राग सुणावै. 

थांरौ मुखङो चमकै ज्यू, पूनम रात च्यांनणी
होठां बिचाळै रद चमकै, ज्यू आभै री बिजळी. 

मुखङै माथै लट्टीयां नाचै, ज्यू नागण आछै धोरे री
थूं म्हारी पूजा अर अरदास, हूं थांरौ पूजारी. 

जद ओल्यूं आवै थांरी, हाथ दिलङै माथ धर लैवूं
मन रै दरपण मांय थांरा दरसन कर लैवूं. 

थूं जीवण री आस है म्हारै सुनेपन में
सातों जळम थंनै पाँऊ, आ चावना मन में...
        'नवल'

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

नई आशा, नया वर्ष (कविता) - नवल जाणी

मित्रता दिवस विशेष

यादों के झरोखों से... नवल