पल-पल थारी औल्यूं - नवल जाणी (राजस्थानी कविता)

'पल-पल थारी औल्यूं '
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    नवल जाणी
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च्यांनण रातङी कोचर बोल्यां, विरह रा किंवाङ खोल्यां.
पल-पल थारी ओल्यूं  आवै, हिचकी मारै हिचकौळा..    

मझ रातङी बादळ आया, बैरण बणी रै निंदिया..
टप-टप टाप टपकण लागी, भीज रही है सैय्या..  

सगळां रै आँगण दिवलां जळै, म्हारै आँगण जिया.
बायरौ बैहतो डांभ दैवे, ताना मारै सैय्या..  

कींकर कैवूं मन री बातां, हिवङौ दैवे हबौळा.
निंदिया म्हारी बैरण बणगी, आवै घणी उबाया..  

टूटी निंदिया बिखरया सुपना, छूटगी रै आसा.
आँख्यां झरै झरणै ज्यूं, बध रैयी मन री प्यासा..  

आँख्यां आई अंऊङौ री जौन, बैरण बणी रै निंदिया.
थैई बतावां म्हैं कै करूँ, कर-कर थाक्यां उबाया.. 

पल-पल थारी औल्यूं आवै, हिचकी मारै हिचकौळा...
       'नवल'

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