परेम रा छांटा - नवल जाणी (राजस्थानी कविता)
परेम रा छांटा
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नवल जाणी
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सूरज उग्यो
नुंवी किरणों सागै
दैवण लाग्यो रोशनी
कण-कण में.
भूलो दुख अर
दुसमणी री भावना
जो भी हुवै
अपणै मन में.
निबळ निराशा
अर सूनोपन
कदै'ई ना आवै
आँगन में.
नुंवै साल रै
नुंई टैम में किलकारी
टाबर-टोळी
करै प्रांगण में.
ऊँचा सुपणा
ऊँची उडान
सफल हरमेस
हुवौ जीवण में.
परैम रा छांटा
बरसे जन पर
ज्यूं बरखा
बरसे सावन में...
'नवल'
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