बरखा रा सुर - (राजस्थानी कविता) - नवल जाणी
'बरखा रा सुर' -
(राजस्थानी कविता)
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नवल जाणी
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जद बरखा हुवै
कितो आछौ लागै.
बीहड़ै री
भीजती वनासपतियों सूं
उठै है सौंधी खुशबू
अर फैल जावे है संगळे वन में.
अेक रोहिड़ै रै हैट
ऊभो है नन्हों हिरणियों
डरू-फरू दिखे.
थूं जाणै, वो कुण है
वो 'म्है' हूं.
दुनिया री काय-कोय सूं
आगो अेक मानखो
धरा री हरियाली मांय
सुणने आयो अादम गीत.
थूं भी आज्या मिलावो
सुर में सुर...
* (थूं - प्रिय)
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