परेम रै बदळै परेम - नवल जाणी (राजस्थानी कविता)

परेम रै बदळै परेम
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नवल जाणी
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कठै अर कियां निभा सकूं म्हूँ
इतरौ परेम
जिको लडावती जावै है थूँ
कै करूँ म्है थारां इतरां उपहारां रौ
कियां पडूत्तर दूँ थारी मनवारां रौ .

म्हानै देखतां ही थारी आँख्यां मांय
आ जावै है
मां री जियां घणीहारी चमकण
कूङ अर धोखे री इण दुनिया मांय
थारौ आछौ परेम
जियां रेत रै धोरां मांय
हांसतो रैवै रोहिङो  ..

थूँ तो हरमेस करै पूजा अर अरचना
आपणै ईसरां सूं कईजै
म्हानै ही सीखणौ है
थांकी जियां परेम करणो अर लुटाणो
क्यौ'क म्हैं ही कर सकूं
थांरै जियां परेम रै बदळै परेम ...
              'नवल'

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