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भीतर की कुंडी: एक छोटी-सी रोशनी का अनुभव

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भीतर की कुंडी: एक छोटी-सी रोशनी का अनुभव       (बाजरे के खेत में, नागड़दा 2025) जीवन में कई बार ऐसा होता है कि हमारा मन किसी बंद दरवाज़े की तरह जड़ हो जाता है। हम बाहर की दुनिया को कठिन, अप्रिय या असंभव समझने लगते हैं। पर सच तो यह है कि दरवाज़ा बाहर से नहीं, भीतर से बंद होता है। और वहीं कहीं, हमारे ही मन की तहों में, एक अदृश्य-सा हाथ—शायद अनुभव, शायद समय, शायद कोई सुकून भरा विचार—धीरे से उस कुंडी को खोल देता है। यही वह क्षण होता है जब अचानक सब कुछ पहले जितना भारी नहीं लगता। दुनिया वैसी ही रहती है, लेकिन उसे देखने का हमारा दृष्टिकोण बदल जाता है। हम समझते हैं कि कठिनाइयाँ अक्सर बाहर नहीं, हमारे भीतर बनाई गई दीवारों में रहती हैं। भीतर की कुंडी खुल जाए, तो रास्ते अपने आप सरल दिखने लगते हैं। शायद जीवन बस इतना ही चाहता है—हम थोड़ा-सा भीतर झाँक लें। Naval Jani