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पुकार

सुनो! इस धरा के कोने-कोने से गूंज रही है एक पुकार, आकाश की गहराइयों में घुली हुई है यह आवाज़। ये हवाएँ, जो कभी सहलाती थीं, अब रोष में हैं। ये नदियाँ, जो जीवन देती थीं, अब उफान में हैं। धरती की कोख, जिसने जन्म दिया, अब थक चुकी है। उसकी सांसों में धूल और धुएँ का भार है। क्या तुम सुन सकते हो? उस पक्षी की चीख, जिसके पर काट दिए गए? उस पेड़ की सिसकियाँ, जो जड़ से उखाड़ दिया गया? ये पुकार है उन लहरों की, जो सागर की गोद से दूर हो रही हैं। ये पुकार है उन जीवों की, जो हमारे लालच की भेंट चढ़ गए। सुनो! ये समय है जागने का। धरती पुकार रही है, आकाश पुकार रहा है, हमारी आत्मा पुकार रही है। अगर अब नहीं सुना, तो शायद कल की सुबह हमारी होगी ही नहीं। @कवि नवल

हार की गरिमा

हारने वालों का भी अपना एक कद होता है। वे जिन्होंने मिट्टी पर गिरकर धूल को माथे लगाया, और कहा— "मैंने कोशिश की।" जीत की चमक भले उनसे दूर रही हो, पर उनके पसीने की बूंदें ज़मीन पर इबारत लिख जाती हैं। मलाल उन्हें हो जिन्होंने क़दम तक न बढ़ाए, जो दूर खड़े सिर्फ तालियाँ बजाते रहे, या ताने कसते रहे। दौड़ में उतरना ही हिम्मत की निशानी है। जो हारकर भी चलते रहे, वे कहीं न कहीं जीत की राह पर हैं। नवल 

गढ़वाल की एक सर्द रात

गढ़वाल की एक सर्द रात गढ़वाल की इस सर्द रात में, चीड़, चिनार और बुरांश के पेड़ों के सूखे पत्ते जैसे एक पुरानी किताब के पन्नों से गिरते हैं। उनमें बसी कहानियां आज भी हवा के साथ बहती हैं, बादशाहीथॉल के S.R.T. कैंपस के आंगन से लेकर, चंबा की पगडंडियों पर चलती हुई, रानीचौरी के सेब के बगीचों तक जाती हैं। वो पहाड़ी ढलानों पर गाय चराते ग्वाले, जिनकी कंधों पर पड़ी रुमालों में बंधे जीवन के पल थे, जैसे मेरे अपने भी कुछ पल वहीं रह गए। शिक्षा स्नातक की वो क्लास, जहां मैंने किताबों से ज्यादा इन पहाड़ों के सादे और सच्चे लोग पढ़े। हॉस्टल की मेस की टेबल पर वो किस्से, जहां हर चाय की प्याली के साथ कुछ सपनों का जिक्र होता, और कुछ खामोशियां भी पिघलती थीं। वो एक साल का समय, जो मेरे जीवन का आधा हिस्सा बनकर, यहीं कहीं छूट गया है। पचीस साल बाद भी, वो सर्दियाँ अब भी मेरी यादों में बसी हैं। वो चट्टानों पर उकेरे हुए पल, जिन्हें समय की सर्द रात भी धूमिल नहीं कर पाई। तेरी यादें जैसे ठंडी हवा की तरह, अब भी मेरी रूह में बहती हैं। गढ़वाल की इस सर्द रात में, वो सब कुछ जैसे वहीं है, मेरे अंदर, और इस पहाड़ के हर कोने में...

हिंदी है तो हम हैं - नवल

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हिंदी है तो हम हैं -कविता, नवल   🎵🎶 (सुनने के लिए 👆 clik करें )    विद्यालय पुस्तकालय में विद्यार्थियों के साथ हिंदी है तो हम हैं .................... नवल जाणी  .................... हिंदी है तो हम हैं हिंदी है तो सपने, हिंदी में कहें दिल की  सारे बातें अपनी। हम सबका गौरव है हिंदी इसमें बसी हर खुशी है, मिट्टी की खुशबू बसी है हम सबकी जान है हिंदी। हमारी पहचान ये भाषा है हर दिल में इसका वास है, देती ये हमें जुनून व जोश है हिंदी से ही सब कोई खास है। भाषाओं के शीर्ष पर बैठी मेरी प्यारी हिन्दी भाषा, हर दिल की है ये आवाज़ हिन्दी से है सब का नाता। हर गली हर शहर में हिन्दी बोलें हम मिलके, हिन्दी की मिठास में खो जाएं हर शब्द में हम गीत गाएं। हर दिल की आवाज़ हो तुम हर लब की मिठास हो तुम, गूँजती है हर गीत में हर कहानी का रस हो तुम। तुमसे धड़कन है दिल की तुमसे पहचान है अपनी, हर द्वार पे दस्तक देती हर मन में तुम बसी हो। हर अक्षर में मिठास हर शब्द में जोश, कहानी की गहराई में छिपी है खुशियों का होश। सरल शब्दों की प्यारी मिठास दिल की गहराईयों की बात, गीतों मे...