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क्षणिकता और स्थायित्व

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क्षणिकता और स्थायित्व     (In the millet field) फूलों के बीच खड़ा एक पत्ता मुझे हमेशा यह सिखाता है कि निकटता का अर्थ अपनापन नहीं होता। फूलों की चमक और सुगंध मोहक ज़रूर है, पर वह क्षणिक है, उतनी ही क्षणिक जितनी किसी उत्सव की रोशनी। पत्ता जानता है कि उसका जीवन किसी और की आभा पर नहीं टिका, बल्कि उस गहरी मिट्टी पर टिका है, जहाँ से उसकी हरियाली जन्म लेती है। यही कारण है कि फूल के झर जाने पर भी उसकी हरियाली बनी रहती है, क्योंकि उसका संबंध क्षणभंगुर शोभा से नहीं, बल्कि वृक्ष की जड़ों से है। मुझे लगता है जीवन भी ऐसा ही है। दूसरों की निकटता से मिलने वाला गौरव टिकाऊ नहीं होता। जो टिकता है, वह है हमारी अपनी पहचान, हमारे भीतर का सत्य, वह नमी जो हमें जड़ों से जोड़ती है। शायद आत्मसम्मान का सबसे बड़ा रूप यही है—भीड़ के बीच रहते हुए भी अपने हरेपन को बचाए रखना। ~Naval Jani 

परपीड़ा में सुख -नवल

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परपीड़ा में सुख "मैं जब अपने दुख की  गाँठ खोलता हूँ, तो कुछ सुख अनजाने में  किसी और तक पहुँच जाते हैं ।" *** *** दूसरे का दुःख, कई बार श्रोता के भीतर एक गुप्त सुख की अनुभूति करा देता है। यह सुख सहानुभूति से उत्पन्न नहीं होता, बल्कि उस तुलना से आता है जिसमें व्यक्ति यह अनुभव करता है कि "कम से कम मैं तो इससे बेहतर हूँ।" जब कोई अपनी पीड़ा साझा करता है, तो वह यह सोचकर करता है कि शायद उसे कोई समझेगा, सुनेगा, कुछ कहेगा जो सही हो। लेकिन कई बार सुनने वाला उस दुःख को एक दृश्य की तरह देखता है– कला, अभिनय या समाचार की तरह–जहाँ वह भीतर से संतुष्ट होता है कि उसका जीवन कम टूटा हुआ है। ऐसी स्थितियाँ बताती हैं कि समाज में करुणा का स्थान धीरे-धीरे आत्मतुष्टि ने ले लिया है। अब हम दुख सुनते नहीं, निहारते हैं–और उसी क्षण, दुःख का साझा करना आत्मीयता नहीं, एक एकांतिक मंच बन जाता है। यही सबसे करुण सच्चाई है – दुःख की गाँठ खुलती है, और कोई और मुस्कुरा उठता है।  ~ नवल जाणी

मेरी चुप्पी -(अनकही बातें)

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  मेरी चुप्पी -कविता  (अनकही बातें -काव्य संग्रह)  कवि : नवल जाणी  भावार्थ: इस कविता में कवि ने "चुप्पी" को एक गहरे भाव और आत्मसंयम के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया है। वे कहते है कि उन्होंने चुप रहना सीख लिया है, ठीक वैसे ही जैसे समुद्र अपनी गहराइयों में कई रहस्य छुपा कर रखता है। यह चुप्पी किसी कमजोरी का परिणाम नहीं, बल्कि एक समझदारी और आत्मनियंत्रण की अभिव्यक्ति है। कवि कहते हैं कि वह देखता, सुनता और समझता भी है, परंतु अपने शब्दों को तालों में बंद कर देता है क्योंकि हर सत्य हर किसी के लिए नहीं होता। यह संकेत करते है कि सभी लोग सत्य को ग्रहण करने की क्षमता नहीं रखते और हर बात सबके सामने कह देना उचित नहीं होता। कवि यह भी जानते हैं कि कौन व्यक्ति कितना गहरा है और कौन केवल सतह पर तैरता हुआ दिखावा कर रहा है। यानी, वे लोगों की गहराई, सच्चाई और उनके दिखावे को पहचानते हैं। अंत में वे स्पष्ट करते हैं कि उनकी चुप्पी कोई कमजोरी नहीं है, बल्कि यह एक इंतज़ार है — उस क्षण का जब वक़्त के पानी का बहाव थोड़ा ठहर जाए, और सच्चाई को समझने योग्य माहौल बन जाए। कविता "मेरी ...

शांगढ़ यात्रा : धरती का स्वर्ग

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शांगढ़ यात्रा: जब लगा कि स्वर्ग धरती पर ही है “यदि हिमाचल में ही ऐसी अनुपम शोभा है, तो फिर पहलगाम क्यों जाया जाए?” यही विचार मन में तब उदित हुआ जब मैंने पहली बार शांगढ़ के धरातल पर कदम रखा। प्रकृति की गोद में बसा, शांगढ़ नामक यह छोटा-सा ग्राम हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जनपद की सैंज घाटी में स्थित है। यह स्थान अभी तक भीड़-भाड़ से अछूता है, और अपने प्राकृतिक सौंदर्य के साथ एक शांत, निर्विकार जीवन का अनुभव कराता है। प्रवेश – हरित मैदानों की गोद में शांगढ़ पहुँचते ही सबसे पहले मन को मोह लेता है एक विशाल हरा मैदान – जिसे स्थानीय लोग शांगढ़ मीडोज़ कहते हैं। यह भूमि केवल देखने में रमणीय नहीं, अपितु स्थानीय निवासियों के लिए पवित्र भी मानी जाती है। मैदान के किनारे स्थित है शांगचुल महादेव का प्राचीन मंदिर, जिसकी लकड़ी और पत्थर से बनी सुंदर नक्काशी इसकी सांस्कृतिक महत्ता को दर्शाती है। वहां खड़े होकर चारों ओर फैले देवदार के वन, शुद्ध वायु और नीरव वातावरण आत्मा को विशेष शांति प्रदान करते हैं। प्रकृति प्रेमियों हेतु – ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क यहाँ से सम...

चिनार की पुकार

  चिनार की पुकार ~नवल जाणी झेलम की धारा अब लाल बह रही है, लिद्दर की लहरों में चीखें गूंजती हैं। सैलानियों की हँसी— अब गोलियों की गूंज में खो गई। धर्म पूछकर सीने छलनी किए जा रहे हैं, सवाल नहीं, सिर्फ निशाने तय हैं। चिनार अब मीठे नहीं रहे— उनकी जड़ें नम हैं बेबस स्त्रियों की आंखों से बहते नमकीन पानी से। जब तक मिट्टी की सोच नहीं बदलेगी, चिनार खारे ही उगेंगे, और पहलगाम चीख, चीत्कार की घाटी बना रहेगा।

मेरी शिक्षकीय यात्रा: एक अनुभव (नवल )

मेरी शिक्षकीय यात्रा: एक अनुभव                  Naval Jani मार्च 2008 का दिन मेरी जिंदगी में एक नया अध्याय लेकर आया। बालिका विद्यालय डाबलीसरा में हिंदी शिक्षक के रूप में मेरी नियुक्ति हुई, और मैं पूरे जोश और समर्पण के साथ इस पवित्र कार्य में जुट गया। विद्यालय का माहौल तब बहुत सहज और सौहार्दपूर्ण था। सभी शिक्षक एक-दूसरे के सहयोगी थे और अपने कर्तव्य को ही प्राथमिकता देते थे। विद्यार्थियों के प्रति समान भावना थी, और शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य हर किसी के लिए सर्वोपरि था। करीब 10-11 वर्ष तक डाबलीसरा विद्यालय में अध्यापन कार्य करने के बाद, सितंबर 2018 में मेरा स्थानांतरण वर्तमान विद्यालय में हुआ, जहाँ मैं आज भी कार्यरत हूँ। विद्यालय बदला, माहौल बदला, पर मेरी शिक्षण के प्रति निष्ठा वही रही। लेकिन इस नए वातावरण में मैंने कई सकारात्मक और नकारात्मक बदलाव देखे, जिनसे शिक्षा जगत की वास्तविकता को और गहराई से समझने का अवसर मिला। .... पिछले कुछ वर्षों में विद्यालयों में कार्यसंस्कृति में बड़ा बदलाव आया है। पहले सभी शिक्षक समान भाव से कार्य करते थे, लेकिन अ...