भूली हुई आवाज़ें
“भूली हुई आवाज़ें”
(फोटो नागड़दा के तारामीरा की फसल के खेत में )
कोई समाज या जाति अपनी स्मृतियों — यानी अपने संघर्ष, पीड़ा, इतिहास और सच्चाई — को भूल जाती है, तो उसका अतीत धूल बनकर आने वाले समय की आँखों में चला जाता है।
यानी, इतिहास की भूलें भविष्य को अंधा कर देती हैं।
फिर वही राजनीतिक दिखावे, वही खोखले भाषण और झूठे वादे दोहराए जाते हैं, और लोग भ्रम में रहते हैं कि केवल नारों से परिवर्तन आ जाएगा।
भूल जाना मनुष्य की सबसे कोमल, पर सबसे घातक आदत है।
क्योंकि जब हम अपना सच्चा इतिहास, अपनी पीड़ा और अपनी पहचान भूल जाते हैं — तब हम अपने अस्तित्व से दूर हो जाते हैं।
जिस दिन हम अपने सच को, अपने इतिहास को याद रखना शुरू कर देंगे —
उसी दिन हम फिर से जाग्रत, संवेदनशील और सच्चे मनुष्य बन जाएँगे।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें