'समरसिद्धा' उपन्यास की समीक्षा - नवल जाणी

'समरसिद्धा - प्रेम ,पीङा और
प्रतिशोध की गाथा'
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------- इस उपन्यास में हमें
प्रेम,रोमांच, आध्यात्मिक
प्रेम.शारीरिक आकर्षण आदि के
अनेक रूपों के दर्शन होते है...
समाज में वर्ण व्यवस्था बोलबाला है
पर उसके ऊपर तक सोचने वाले
शास्त्रीजी मौजूद है शुद्र वर्ण के
गुंजन को संगीत , शास्त्रों व वेदों की
शिक्षा देने का फैसला भी अहम है..
मेले में वीरा से लङकर जब गुंजन घायल
हो जाता है तो शत्वरी की नर्म व
मुलायम गोद में सिर रखने पर उसको
दर्द भी रोमांचित कर देने वाला है .
दामोदर के साथ शत्वरी की मंदिर यात्रा
का बस कहना ही क्या ! गायन व नृत्य
का संगम तो शिव -शक्ति का संगम
लगने लगा ...
मेकल राज्य का निषादराज नील अपने स्वाभिमान व इज्जत के साथ समझौता कम शक्ति-बल होने के उपरांत भी नहीं करना चाहता ...
नील व धनंजय वेश बदलकर गुप्त रूप से दक्षिण कोसल की सामाजिक व आर्थिक परिस्थितियों को मालूम करने के लिए राजधानी श्रीपुर जाते है तो देखते है कि वहाँ फैले भ्रष्टाचार से तात्कालिक समाज की स्थिति का पता चलता है ...
अमोदिनी के रूप में दामोदर मोहित हो
जाता है . अमोदिनी को लगता है कि
ऐसा पुरुष आज तक उसकी चौखट पर
नहीं आया . उनका मिलन सारी जिँदगी
कसक देने वाला मिलन बन गया .
महानदी के किनारे दामोदर व शत्वरी का
मिलन एक साथ कई मृदंग़ व सितार
बजने जैसा लगा पर जब शत्वरी ने
अमोदिनी के साथ दामोदर को रतिक्रिया
करते देखा तो मानो सारे मृदंग़ व सितार
एक ही झटके से टूट गए...
वर्ण व्यवस्था में शुद्रों व चांडालों पर
हो रहे अत्याचार व अस्पर्श्यता की
घिनोनी हरकतें होती जिसमें आम जनता
राजदरबार का साथ देती . शत्वरी को
अपने बच्चे के साथ चांडाल बस्ती में
भेजना फिर चांडालों का राज्य के विरुद्ध
विद्रोह करना आज का नक्सलवाद व व
आतंकवाद से मिलता जुलता रूप ...
उत्तरी कोसल अपने दुश्मन दक्षिण
कोसल में अस्थिरता फैलाने के लिए
मेकल की सेना का अपने स्वार्थ के
इस्तेमाल करना चाहता है. आज के
परिप्रेक्ष्य विभिन्न देशों की
महत्वाकांक्षा दर्शाता है .
पल्लवी के स्वयंवर में एक अभिमानी
राजकुमारी का दर्प उस समय टूट जाता
जब हाथी को काबू करने के बाद
निषादराज नील विवाह करने से इंकार
कर देता है..
राज्य की गलत आर्थिक व सामाजिक
नीतियों के कारण चांडालों का विद्रोह
करने पर राजदरबार जो विलासिता में
डूबा हुआ था , जागता है हार स्वीकार
कर चांडालों को गले लगाता है ..
अमोदिनी वैशाली गणिकाएँ होते हुए भी
और दामोदर अपने रास्ते से भटका हुआ
होने के बावजूद अपने अपने कर्तव्यों
में सफल होते है..तथा शत्वरी ने योग
अध्यात्म और जनकल्याण को अपने
जीवन का मार्ग बनाकर जीवन सार्थक
किया..
इसमें प्रेम, पीङा, दर्द व प्रतिशोध की भावना तो दूसरी तरफ एक राज्य की महत्वाकांक्षा से दूसरे राज्य में आई अस्थिरता उजागर होती दिखाई देती है...
लेखक श्री संदीप जी नैयर (UK) ने
आज के समाज व परस्पर विरोधी देशों
के मध्य प्रेम, दर्द, पीङा व बदले की
भावना , युद्ध , कूटनीतिक चालों ,
राज्यों में फैले भ्रष्टाचार , आधुनिक
रासायनिक हथियारों की होङ व प्राचीन
सभ्यता संस्कृति को पाठकों तक
पहुँचाने में सफल रहे है ...
समाज व देश की हर स्त्री को
समरसिद्धा बनकर नारी जाति के सामने
आने वाली समस्त समस्याओं का
डटकर मुकाबला करना चाहिए ...
'नवल'

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