ग्राम्य जीवन व मानसिक शांति
सूर्य के उदित होते समय लालिमा लिए हुए आसमान जैसे किसी ने गेरू से पोत दिया हो विशाल छत को, लाली भरे आकाश में समुद्री नाव की तरह तैर रहे मेघ, रात व दिन में बढ़ता तापांतर, दिन में तेज धूप व गर्मी, रात में गुलाबी ठंड, पेड़ पौधो के झुरमुट में पक्षियों की चहचहाहट, सुबह-सुबह मोरों का झुंड दाना-पानी के लिए आ जाता है, गांव में चारों ओर धोरों,पेड़-पौधो, वन्य प्राणियों से घिरे ढाणी में रहना कितना सुकून व आनंद देता है वह तो केवल रहने वाला ही जानता है. ताजा व शुद्ध हवा की शीतल बहार, चारों तरफ फूलों से लदे रोहिडे़ के वृक्ष, शमी के बड़े-बड़े वृक्ष,कुलांचे भरते हिरण, छुप कर दौड़ते खरगोश आदि दृश्य को देखना मैं गोवा के समुद्र किनारे, थाईलैंड के रोमांस व स्विट्ज़रलैण्ड की वादियों से कम नहीं मानता...
(आज हम देखते है कि हर मनुष्य भागदौड़ भरी जिंदगी जी रहा है, किसी के पास दूसरों के लिए क्या अपने लिए भी फुर्सत के क्षण नहीं है. हर कोई दूसरों से आगे निकलने की होड़ में स्वयं को भूल रहा है. हमें एक महत्त्वपूर्ण मनुष्य जीवन मिला है जिसका उद्देश्य शान्ति व सौहार्दपूर्ण तरीके जीवन यापन करना है, लेकिन आज दौलत के पीछे 'हाथ पगरखी लेकर पड़ गए' है.
पहले कम कमाकर सन्तुष्ट रहते थे लेकिन आज अधिक ➕ कमाकर भी मानव दुखी होता जा रहा है. इतनी भागदौड़ के बाद भी हम सुखी नहीं हो रहे है तो आधुनिक व सर्व साधनयुक्त युग में जी कर क्या हम आगे जा रहे है, विकास कर रहे है या विनाश की ओर जा रहे है. हर कोई गांव के स्वच्छ पर्यावरण को छोड़कर शहरों की ओर भाग रहे है, खेत में खुले वातावरण में बनी ढाणी का त्याग कर पांच सौ वर्ग फुट के एरिये के फ्लैट में निवास कर अपने आप को धन्य महसूस कर रहे है.. तो आइए ... गांवों में रहकर इन्हें खुशहाल बनाए... )
Balaji Temple, Madhasar (Baytu)
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