हिंदी है तो हम हैं -कविता, नवल 🎵🎶 (सुनने के लिए 👆 clik करें ) विद्यालय पुस्तकालय में विद्यार्थियों के साथ हिंदी है तो हम हैं .................... नवल जाणी .................... हिंदी है तो हम हैं हिंदी है तो सपने, हिंदी में कहें दिल की सारे बातें अपनी। हम सबका गौरव है हिंदी इसमें बसी हर खुशी है, मिट्टी की खुशबू बसी है हम सबकी जान है हिंदी। हमारी पहचान ये भाषा है हर दिल में इसका वास है, देती ये हमें जुनून व जोश है हिंदी से ही सब कोई खास है। भाषाओं के शीर्ष पर बैठी मेरी प्यारी हिन्दी भाषा, हर दिल की है ये आवाज़ हिन्दी से है सब का नाता। हर गली हर शहर में हिन्दी बोलें हम मिलके, हिन्दी की मिठास में खो जाएं हर शब्द में हम गीत गाएं। हर दिल की आवाज़ हो तुम हर लब की मिठास हो तुम, गूँजती है हर गीत में हर कहानी का रस हो तुम। तुमसे धड़कन है दिल की तुमसे पहचान है अपनी, हर द्वार पे दस्तक देती हर मन में तुम बसी हो। हर अक्षर में मिठास हर शब्द में जोश, कहानी की गहराई में छिपी है खुशियों का होश। सरल शब्दों की प्यारी मिठास दिल की गहराईयों की बात, गीतों मे...
किसी देश के किसी गाँव में Naval Jani किसी देश के किसी गाँव में, अब भोर मुर्गों की बाँग से नहीं, मोबाइल के अलार्म से जागती है। सूरज की पहली किरण खिड़की से झाँकती है, पर खिड़कियाँ अब खुले आँगन में नहीं, सीमेंट की ऊँची दीवारों में क़ैद हैं। पगडंडियों की मिट्टी पर अब कंक्रीट की सड़कें बिछ चुकी हैं, जहाँ बैलगाड़ियाँ चलती थीं, वहाँ अब ट्रैक्टर और बाइकें दौड़ती हैं। खेतों में किसान अब हल नहीं चलाते, बल्कि मोबाइल पर ऐप्स में मौसम देखते हैं, बीजों से पहले उधार का ब्याज उगता है, और फ़सलों से पहले लोन की किस्त कटती है। चौपालों की जगह व्हाट्सएप ग्रुप्स ने ले ली, जहाँ हँसी के ठहाके नहीं, सिर्फ़ इमोजी भेजे जाते हैं। जहाँ कभी बुज़ुर्ग पीपल तले बैठ कहानियाँ सुनाते थे, अब वे ऑनलाइन न्यूज़ पढ़ते हैं, और पुरानी यादों की एल्बमें गैलरी में बदल चुकी हैं। बच्चों के खेल अब मैदानों में नहीं, मोबाइल स्क्रीन में सिमट गए हैं, गिल्ली-डंडा, कबड्डी सब अतीत हो गए, अब ‘गेमिंग चेयर’ पर बैठकर वर्चुअल दुनिया के योद्धा बनते हैं। गाँव में बिजली तो आ गई, पर बात अब भी अधूरी है, लाइट से ज़्यादा, नेटवर्क आने की ख़ुशी होती है। ...
'हर शनिवार घर जाना जरूरी है और सोमवार अलसुबह जालौर -जैसलमेर एक्सप्रेस में आना .' ' पुराने मैसी ट्रैक्टर के पीछे भारी भरकम ट्रोली जोत दी है, टोली का भार कैसे खींचेगा. ' ऐसे ही बहुत सारे भारी भरकम सवालों को सहने वाला भाई जब ग्रेनाइट सिटी के नाम से मशहूर जिले जालौर से आकर विष्णु कॉलोनी के प्लॉट में हमारे साथ रहता था.कक्षा ग्यारहवीं में राजस्थानी साहित्य के साथ अध्ययन करने के लिए घर से दूर एक कम सुविधा वाले कमरे में रहना व स्कूल के बाद लगभग सोना ही उनका काम था. भाई ने कई बार मुझे कहा कि 'सबसे अच्छा काम मुझे सारे दिन सोना लगता है. ' उस गोल्डन समय को बीते पंद्रह- सोलह साल हो गए. आज भी याद है वो दिन, उन दिनों हर रोज खाने में एक समय मिट्टी की हांडी में मूंग की दाल बनती थी, कभी कभी तो हद तब हो जाती, जब बिना 'तड़का' दिए हम दाल बनाते परंतु खाने वालो को इसकी भनक भी नहीं लगती. कभी कभी तो बहुत ज्यादा 'तड़का' दे देते एक बार तो भाई का हाथ गरम घी से जल गया था, जलने का निशान अभी भी है. घर से दूर स्वयं के हाथों खाना बना कर बड़ा ही स्वादिष्ट व संतुष्ट कर देने वाल...
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