यादों के झरोखों से... नवल

*यादों के झरोखों से... * नवल

उस दिन मेरी जिंदगी का एक खुबसूरत पल था, जब राजकीय सेवा में चयन हुआ. ज्यादा बेरोजगारी भी नहीं भुगती. जैसे ही शिक्षा स्नातक की डिग्री प्राप्त की, जल्दी ही भर्ती परीक्षा हुई, मेहनत व माता-पिता के सत्कर्मों से राजकीय सेवा का अवसर मिला. वर्ष था मार्च दो हजार आठ. चयन के लगभग बारह माह बाद राजकीय बालिका विद्यालय में प्रथम नियुक्ति मिली. विद्यालय बहुत ही सुंदर, आकर्षक भवन, बडे़ भाई तुल्य शिक्षक साथी, प्यारे-प्यारे नन्हें-मुन्हें बच्चें. विद्यालय नवक्रमोन्नत था, कक्षा पाँच से छ:, छ: से सात, सात से आठ व कक्षा आठ के आठ-नौ बैच कब निकल गए, पता ही नहीं चला. जब मेरी नियुक्ति हुई तब हम तीन साथी विद्यालय में थे जो अपनी मेहनत व लगन से बच्चों को किताबी ज्ञान के साथ-साथ सामाजिक रीति रिवाजों, सुसंस्कार, नैतिक शिक्षा का पाठ पढ़ा रहे  थे.  मेरी नयी नयी नियुक्ति थी मुझे हर काम के लिए साथियों से पूछना पड़ता था, सभी 'सर' प्रेम भाव, मुझे एक छोटा भाई मानकर सदैव हर संभव सहयोग व परामर्श प्रदान किया. मुझे उनसे बहुत कुछ सीखने को मिला, अच्छा अनुभव प्राप्त हुआ, जिनका मैं सदैव ऋणी रहूंगा. सरकार ने शिक्षा पर अधिक ध्यान दिया, अनेक नई-नई योजनाएं बनाई, नए कानून बनाए, जिसमें आर टी ई (शिक्षा का अधिकार) प्रमुख है, जिसमें अध्यापकों की संख्या छात्र संख्या के अनुसार निश्चित कर दी. सौभाग्य से हमारे विद्यालय में भी दो नए साथी सन् दो हजार बारह के सितम्बर मास में आए तो हमारी खुशी का ठिकाना न रहा व बच्चों के भी शिक्षा के स्तर व गुणवत्ता में परिवर्तन हुआ. विद्यालय दिन दूनी रात चौगुनी प्रगति कर रहा था. बच्चे व हम सभी साथी बहुत खुश थे, नए साथी अपने-अपने विषय के विशेषज्ञ थे, मुझे इन साथियों से बहुत कुछ सीखने को मिला. तभी अचानक एक दिन सरकारी नियम 'सिक्स-डी' प्रक्रिया के तहत हमारे सबस ज्यादा अनुभवी साथी का स्थानांतरण पास केे बडे़ विद्यालय में हो गया, एक पाँच पांडवों की जोडी़ में  से चार साथियों ने विद्यालय की सभी क्रियाकलापों व गतिविधियों को जारी रखा. सफलता के शिखर को हर किसी को पाने का सपना होता है जब किसी के पास योग्यता हो तो कोई कैसे रोक सकता है. इसी कड़ी में वनस्पति विज्ञान में डॉक्टरेट उपाधि धारण किए हुए 'सर' का चयन जीव विज्ञान के प्राध्यापक पद पर हो गया, हमें बहुत खुशी हुई कि साथी ने उत्तरोत्तर प्रगति की, परंतु विद्यालय के बच्चों का अध्ययन कार्य प्रभावित हुआ. हमारे शिक्षक साथियों का पेड़-पौधों में विशेष रूचि व लगन से विद्यालय में सघन वृक्षारोपण किया गया, विद्यालय में वे पौधे आज वृक्ष बन कर शीतल छाया व शुद्ध वातावरण प्रदान कर रहे है. फिर तीन साथियों के साथ विद्यालय की गाड़ी को 'गुड़का' रहे थे. सरकारी आदेशानुसार एक दिन पास का प्राइमरी विद्यालय का हमारे विद्यालय में 'मर्ज' हो गया व हमें एक साथी ओर मिलने का सौभाग्य मिला, नए साथी को सामाजिक जीवन, ग्रामीण जीवन, रिश्तों, संबंधों आदि का बहुत ज्ञान व अनुभव था जो हमें उनसे मिला भी. हमारे हैड सर का तो कहना क्या, बहुत ही भले मानुष, सरल व हंसमुख स्वभाव के धनी, सहयोगी, परामर्शदाता, बड़े भाई-सा व्यवहार मुझे हमेशा याद रहेगा. कभी भी हमें विद्यालय में किसी चीज की कमी का अहसास नहीं होने दिया. विद्यालय में बच्चों के अभिभावक, ग्रामीणजन बहुत मेहनती, हर कार्य में सहयोग के लिए तत्पर रहने वाले, हमेशा अपने बच्चों के पढ़ाई की चिंता करने वाले बहुत बेहतरीन व सुलझे हुए इंसान. हमें इनसे कभी कोई शिकायत नहीं व उन्हें हमसे कोई शिकायत नहीं. बहुत ही प्रेम भाव, भाई चारे, बंधुत्व की भावना से हम विद्यालय में रहे.  इसी बीच ग्रामीणों, विद्या व खेल- प्रेमियों के सहयोग से वृत्त स्तरीय खेलकूद प्रतियोगिता का सफल आयोजन किया गया व विद्यालय ने खुब वाहवाही लूटी.
हमारे विद्यालय के बारें में बात की जा रही हो ओर नीम वृक्ष व छाया में बने मंच की चर्चा न हो तो आनंद नहीं आता. नीम का जितना गुणगान करें उतना ही कम है, ऐसा नीम का महावृक्ष मैंने कहीं नहीं देखा. जैसा नीम, नीम की गहरी घनी छाया वैसा ही उसके नीचे बना विशाल मंच जिस पर बैठ कर हम आनंदित व गौरवान्वित अनुभव करते है. गर्मियों में तो हम नीम की छाया में भूखे-प्यासे भी बैठ सकते है, मन व तन को बड़ा सुकुन मिलता है, हर कोई आने वाला मेहमान इस नीम की चर्चा अवश्य करता है.  नीम की इस छाया में बैठना भी हर किसी के नसीब में नहीं होता है मेरे साथ भी यही हुआ. एक बार फिर 'सिक्स-डी' की चर्चा जोरों पर थी, मेरा हृदय बहुत जोर से धड़क रहा था, तभी अचानक सूची जारी होती है ओर हमारे साथी का नाम आता है,सूची में नाम देखकर हृदय की धड़कन सुन कर व चेहरा देखकर हर कोई बता सकता था कि मेरी स्थिति क्या थी.  छ:-सात दिन गुजरे कि संशोधित सूची जारी होती है, उसमें मेरे साथी के नाम के साथ एक ओर नाम होता है, जो मेरा साथी तो नहीं पर उस नाम ने मुझे बहुत प्रभावित किया. नीम की छाया, प्यारे बच्चों का प्रेम, विद्यालय से मोह छूट ही नहीं रहा है, मन है कि मानता ही नहीं, हर क्षण, हर पल मेरा विद्यालय, हमारा विद्यालय...
अब नए विद्यालय में पदस्थापन हो गया, बड़ा विद्यालय, बच्चों की संख्या भी ज्यादा, नए बच्चे, नए साथी, मेरे लिए नया क्षेत्र...  पर क्या करें राजकीय आदेश की पालना में यह सब करना पड़ा...  हमारे विद्यालय में बिताए लगभग ग्यारह वर्ष, मेरी जिंदगी के बहुत हसीन दिन थे, ऐसा लग रहा है कि कल की ही बात हो. समय का पहिया किसी का इंतज़ार नहीं करता. समझदार वही है जो समय के साथ चलें.  यादों के झरोखों में ओर भी यादें है उनकी बात फिर कभी करेंगे... हमारे विद्यालय से विदा होकर नए हमारे विद्यालय में जाकर मन तो नहीं लग रहा है परंतु आशा व विश्वास है कि जल्द ही नए विद्यालय को हमारे, मेरे विद्यालय में बदल लुंगा... लेकिन मेरे मन व दिलोदिमाग में मेरे विद्यालय की यादें, अनुभव, बिताया समय, बच्चों का प्यार, साथियों का प्रेम, ग्रामीणजनों व अभिभावकों का सहयोग हमेशा याद रहेगा...
#नवल
समय: 24 सितम्बर, 2018, रात्रि 9 बजे
स्थान: भाद्रपद पूर्णिमा की धवल चंद्रिका में रेगिस्तान में बाळु रेत क टीलेे पर खींप के चड़े से बनी चारपाई से...
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बलवंत जी सर के साथ विद्यालय प्रांगण में

नन्हें मुन्हे बच्चों के साथ

कक्षा 8 के विद्यार्थियों के साथ

7 वें वेतनमान आंदोलन, जयपुर 
7 वें वेतनमान आंदोलन, जयपुर

संजू व पिंकी के साथ 

कक्षा 3 के बच्चों के साथ

स्टाफ साथी डॉ मनोहर सिंह के साथ

प्रार्थना स्थल

विद्यालयी पौशाक में विद्यार्थी

मौखिक परीक्षा के दौरान

विद्यालय के लिए तैयार संजू व पिंकी

फोटो खिंचवाने के तैयार

विद्यालय के वरिष्ठ विद्यार्थी

विद्यालय में संजू व पिंकी द्वारा बनाया घरौंदा

गुणा के प्रश्न हल करती पिंकी

गुणा के प्रश्न हल करती संजू 

राजकीय बालिका विद्यालय

विद्यालय में सौरभ जांगिड़

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