दूर कहीं है रोशनी / नवल
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चारों तरफ है अंधेरा
जाना चाहता हूँ मैं प्रकाश की ओर,
जो है दूर बहुत एक कोने में
डरा हुआ, सहमा हुआ-सा.
वहाँ है प्रकाश की एक किरण
सदियों से रहा मैं घने अँधेरे में,
फिर भी हिम्मत नहीं है जाने की
आशा भरी प्रकाश की किरण में.
ऐसा नहीं है कि मैं नहीं जाना चाहता
उज्ज्वलता भरी रोशनी में,
मन करता है कि मैं जाऊं
तसल्ली से बैठ रोशनी में.
नहाऊं नर्म व मुलायम किरणों में
पर शतकों बाधाएँ व रूकावटें है
जिनके जो जाना चाहता है,
प्रकाश में और कर लेना चाहता
धवल रोशनी से एकाकार.
स्वयं व आने वाली पीढ़ियों का
भविष्य उज्ज्वल व बढ़ना चाहता है,
आगे ही आगे, छू लेने आसमान को
पैदा नहीं करता और कोई ये बाधाएँ .
मानव ही परस्पर हाथ थामने की जगह
दूसरे का पैर खींचने में लगा हुआ है,
कोई चाह कर भी नहीं जा सकता
इस रोशनी भरे उज्ज्वल संसार में.
बातें खूब होती, खूब लगते नारे कि
साथ दो हमारा, हम कर देंगे वारे न्यारे,
मानव व मानवता का विकास करेंगे
सबको देंगे उज्ज्वल रोशनी.
तमपूर्ण अंधेरे से दिलाएंगे निजात
चारों ओर फैलाई जाएगी दूधिया रोशनी,
हमें अंधेरे में रखकर जो आप
फैला रहे हो रोशनी अपने गृहों में.
लांघ रहे हो अपनी सीमा
बस! इतना ही करना आप कि
हम स्वयं के कदमों से चले जाएंगे,
दूधिया उज्ज्वल चमचमाती रोशनी में.
चाहे मत पकड़ना हमारे हाथ को,
पर मत करना हमारी टांग खिंचाई
जो दूर कहीं है रोशनी
स्वयं पा लेंगे धवल रोशनी को....
🤔🤔🤔
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